Tuesday 29 August 2017

RAAT









ये रात का समंदर कितना गहरा है
सभी आँखों पर नींद का लगा पहरा है
कुछ सपनों में किसी को अपना बना रहे हैं
कुछ धुंए में गम को उड़ा रहे  हैं
कुछ ज़माने को दोष दे रहे हैं
कुछ जिंदगी को कोष ले रहे हैं
कुछ हंस कर गीत गा  रहे हैं
कुछ रो कर अश्क बहा रहे हैं
कुछ दिल की बात दिल में ही छुपा रहे हैं
कुछ पूरी दुनियाँ  को अपनी तारीफें  सुना रहे हैं
कुछ रात को अपना हमसफ़र बना रहे हैं
कुछ सपनों  को पाने के लिए जी जान लगा रहे हैं |  


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