Saturday 26 August 2017

GHAR

घर 



आज भी याद है जब पेहली बार घर छोड़ रहा था 
 हल्की सी खुशी थी चेहरे पर,पर मन ही मन रो रहा था 
 सोच रहा था कोई रोक ले मुझे जाने से 
 फिर पता नहीं कब आऊंगा इस आशियाने में 
 सारी यादों को एक साथ सजों रहा था 
 जब मैं पेहली बार घर छोड़ रहा था | 

 मैंने पापा से जिद की थी मुझे बाहर पढ़ना है
 मेरे सारे दोस्त जा रहे हैं मुझे घर नहीं रहना है 
 माँ भी मेरी मेरे पास थी
  ये जानते हुए भी  कैसे रहूंगी बेटे बिना
 फिर भी वो मेरे साथ थी  
 आज  माँ  के हाथों  का  खाना खाये बिना सो रहा था  
 मुझे याद आ गया जब मैं घर छोड़  रहा था |


 घर पर कितना आराम था 
न कोई चिंता न कोई  काम था 
अब वो बस एक सपना ही लग रहा था
याद आ गया घर छोड़ना कैसा लग रहा था | 

                 -VSG
                                      

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